व्यक्ति पूरा जीवन मान सम्मान से व्यतीत करने के बाद ज़ब इस दुनिया से चला जाता है तो उसके अंतिम संस्कार के लिये उसे हिन्दू रीती रिवाज के अनुसार श्मशान घाट या मुक्ति धाम ले जाया जाता है| लेकिन आज भी ऐसे कई गाँव हैँ जहां पर श्मशान घाट का निर्माण ही नहीं हुआ है| ऐसे में लोगों का खुले में ही दाह संस्कार करना पड़ता है ऐसा ही वाक्य बल्याह पंचायत के लोहाणी गाँव में देखने को मिलता था, आपको बता दें की बल्याह पंचायत के लोहाणी गाँव में अभी तक कोई श्मशान घाट नहीं था, लेकिन वर्तमान समय में नवनिर्वाचित पंचायत ने यहां पर इतने सालों बाद श्मशान घाट बनाने का काम शुरू किया है, जिसे जल्द ही पूरा कर लिया जायेगा!
इस विषय में ज़ब हमने पंचायत प्रधान वीरू जसवाल से बात की तो उन्होंने बताया की आजतक लोहाणी गाँव के लोगों को जलाने के लिये कोई श्मशान घाट नहीं था, और किसी की मृत्यु होने पर उसे खुले में ही जलाना पड़ता था | ऐसे में इस आधुनिक युग में ये वाक्य खुद में शर्मसार करने वाला लगता था| लोहाणी गाँव वासियों की भी काफी लम्बे समय से मांग थी की उनके लिये एक श्मशान घाट का निर्माण किया जाये, तो ये प्रस्ताव हमने पंचायत में रखा और पंचायत की सहमति के बाद अब इस श्मशान घाट का कार्य शुरू हो गया है ! ये कार्य मनरेगा के तहत किया जा रहा है! 2 लाख के करीब अभी इस प्रोजेक्ट पर खर्च किया जायेगा, ताकि मुख्य श्मशान घाट और कुछ बैठने का स्थान बनाया जा सके, इसके बाद धीरे धीरे हम इसको और व्यवस्थित और देखने योग्य बनाने वाले हैँ|
बल्याह पंचायत के इस फैसले से जहां लोहाणी गाँववासी खुश हैँ, तो वहीं अब किसी भी व्यक्ति को सम्मानजनक तरीके से जलाने और अंतिम यात्रा सम्मानपूर्व करने का होंसला भी मिला है