बड़सर उपमंडल के एक मात्र उपमंडलीय वेटनरी अस्पताल में पिछले काफी समय से स्वीकृत पद नहीं भरे गए हैं। वहीं बात करें इसके अंदर आने वाले छोटे वेटनरी अस्पतालों की तो वहां भी हालात कुछ अच्छे नहीं है। आप को बता दें कि उपमंडलीय वेटनरी अस्पताल में पिछले दो साल से चीफ वेटनरी फार्मासिस्ट ही नहीं है, इसी के साथ वेटनरी फार्मासिस्ट का स्वीकृत पद भी पिछले करीब डेढ़ साल से रिक्त पड़ा है , ऐसी स्थिति में इलाज करने वाले डॉक्टरों पर ही इस काम का बोझ भी आता है। अगर बात करें एक डॉक्टर के कार्य की तो एक डॉक्टर को फील्ड में जाकर जगह जगह बीमार पशुओं को देखना पड़ता है।वहीं दूसरी तरफ डाटा एंट्री से लेकर दवाइयां देने तक का काम भी उन्हें बिना किसी की सहायता से करना पड़ता है। ऐसे में काम करने वाले डॉक्टरों पर भी बोझ बढ़ रहा है , और दूसरी तरफ आम जनता को भी असुविधा होती है।बात करें उप मंडल बड़सर के और वेटनरी अस्पतालों की तो वहां भी स्थिति दिए तले अंधेरे वाली ही है।जिसमें दरकोटी, बुम्बलू, बड़सर, गारली, धबड़याना में कोई भी फार्मासिस्ट नहीं है। ऐसे में विभाग ने अपने बूते पर लोगों की ड्यूटी अलग अलग जगह निर्धारित की है। अधिक जानकारी देते हुए आपको बताते हैं कि धूमल सरकार में हर पंचायत में एक वेटनरी डिस्पेंसरी खोली गई थी। आज भी वो डिस्पेंसरी चलन में है , लेकिन वहां पर नियमित तौर पर सरकारी भर्तियां नहीं कि जाति हैं, और बेरोजगारी के इस काल में युवाओं को उन पंचायत स्तर की वेटनरी डिस्पेंसरीज में भर्ती किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ सरकार द्वारा स्वीकृत पदों को नहीं भरकर उन्हीं अनियमित लोगों से काम करवाया जा रहा है। ऐसे में जहां वर्तमान में जो स्टाफ काम कर रहा है उसपर अधिक बोझ पड़ता है, वहीं दूसरी तरफ लोगों को भी उचित सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। इस तरह से बड़सर के वेटनरी अस्पतालों में टेक्निकल स्टाफ की भारी कमी चल रही । पूरे बड़सर उपमंडल में 8 में से 5 वेटनरी फार्मासिस्ट के पद पिछले काफी लंबे समय से खाली चल रहे हैं। वहीं बात करें अगर टेस्ट सुविधाओं की तो बड़सर उपमंडल के मुख्य वेटनरी अस्पताल में जानवरों के लिए रक्त सम्बधी टेस्ट की सुविधा व एक्सरे जैसी महत्वपूर्ण सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। लोगों को जानवरों का टेस्ट करवाने के लिए बाहर का रुख करना पड़ता है। हमारी पड़ताल में यह भी पता चला कि हर जिले में पशुओं के लिए एक पालीक्लिनिक होता है जहां पर अधिक सुविधाओं के साथ अधिक डॉक्टर काम करते हैं , लेकिन पता करने पर ये पता चला कि पूरे हमीरपुर जिला में पशुओं के लिए कभी कोई पोलीक्लीनिक बनाया ही नहीं गया , गौरतलब है कि अधिकतर जिलों में ऐसे पोलीक्लीनिक बने हुए हैं। ऐसे में बड़सर के पशुओं को बड़े इलाज के लिए पालमपुर या किसी अन्य स्थान पर ले जाना पड़ता है। जिसमें उनका समय और पैसा दोनों बर्बाद होता है।
इस विषय पर जब हमने डॉक्टर सुनील शर्मा से बात की तो उन्होनें बताया की बुम्बलू को छोड़ कर दरकोटी , गारली, धबड़याना और बड़सर में फार्मासिस्ट की पोस्ट पिछले एक साल से रिक्त है, लेकिन हमने काम सुचारू रूप से चला कर रखा हुआ है , और पशुओं को हर सम्भव इलाज समय पर मुहैया करवाया जा रहा है। ऐसे में सरकार चाहे जितने मर्जी भाषणों में जो मर्जी कह ले , लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है, जो आपको अस्पतालों का जायजा लेकर ही पता चलेगा।