हमारे देश को आज़ाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैँ, हमने कई बढ़े आयाम भी इस सफर के दौरान छुए हैँ, लेकिन अगर मैं बात करूँ उपमंडल बड़सर के प्रमुख बाजार की, तो आपको ये जानकर हैरानी होगी की इतने बढ़े बाजार में एक स्ट्रीट लाइट तक नहीं है! मैहरे कस्बा बड़सर उपमंडल का एक प्रमुख बाजार है। लाखों रुपये का टैक्स यहां के दुकानदार हर साल सरकार को देते हैं। लेकिन मूलभूत सुविधाएं भी मैहरे बाजार और यहां के वाशिंदों को उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। एक कस्बे के रूप में विकसित हो रहे मैहरे बाजार में स्ट्रीट लाइट्स तक नहीं है, आप पूरे बाजार में घूमेंगे तो पता चलेगा कि यहां पर एक भी स्ट्रीट लाइट नहीं है। न ही स्थानीय प्रशासन को इसकी चिंता है, न ही राजनीतिक नुमाइंदों को और पंचायतें तो जैसे अपना पलड़ा ही झाड़ चुकी हैं। रात के समय में यहां पर अंधेरा छा जाता है, लोग रात के समय लम्बा सफर कर बसों से जब उतरते हैं, तो उन्हें गुप्त अंधेरे में उतरना पड़ता है , और अपने परिजनों का इंतज़ार करना पड़ता है। ऐसे में कोई भी अप्रिय घटना होने की संभावना हर समय बनी रहती है। स्थानीय दुकानदारों और लोगों ने इस विषय को लेकर कई बार प्रशासन और पंचायतों के समक्ष गुहार लगाई, लेकिन किसी की कोई सुनवाई नहीं हुई!
इस कारण पिछले कई वर्षों से मैहरे बाजार की स्थिति बदस्तूर जस की तस बनी हुई है। इसका एक पहलू ये है कि मैहरे 4 पंचायतों में बंटा है , जिस कारण यहां पर कोई भी पंचायत ध्यान नहीं देती है, केवल वोट लेने के समय ही यहां के लोग राजनीतिक नुमाइंदों को याद आते हैं, जीत जाने के बाद कोई भी सुध लेने को राजी नहीं होता। ऐसे में अब स्थानीय लोग मैहरे को एक अलग पंचायत बनाने की मांग भी जोर शोर से उठा रहे हैं , ताकि अलग पंचायत बनने पर यहां की व्यवस्थाएं दुरुस्त की जा सकें, लेकिन हाल फिलहाल में ये कार्य भी ठंडे बस्ते में ही पड़ा हुआ है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर और कब तक मैहरे बाजार को और यहां के वाशिंदों को अंधेरे में बिना स्ट्रीट लाइट्स के रहना पड़ेगा।इस पर जब हमने बड़सर के उपमंडलाधिकारी शशिपाल शर्मा से बात की तो उन्होंने कहा कि स्ट्रीट लाइट्स लगवाने का काम स्थानीय पंचायतों का है, और स्थानीय पंचायत ही इस विषय में निर्णय कर सकती है, प्रशासनिक स्तर पर ये कार्य हमारे कार्यक्षेत्र में नहीं आता।