भारत जैसे विशाल और सामरिक दृष्टि से संवेदनशील देश में सेना की ताकत केवल सैन्य साजो-सामान से नहीं, बल्कि सैनिकों की संख्या और मनोबल से भी मापी जाती है। लेकिन हाल ही में यह सामने आया है कि भारतीय थल सेना में करीब 1 लाख सैनिकों की भारी कमी है। यह स्थिति केवल सुरक्षा के लिहाज से नहीं, बल्कि युवाओं के लिए अवसरों की दृष्टि से भी चिंताजनक है।
क्या है वर्तमान स्थिति?
2024-25 के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय सेना में कुल स्वीकृत पदों में से लगभग 97,000 पद रिक्त हैं। यह कमी विभिन्न रैंकों—जवान, नायक, हवलदार, जेसीओ (Junior Commissioned Officers) आदि—में है। इससे सैनिकों पर कार्यभार बढ़ रहा है और देश की सामरिक स्थिति पर भी असर पड़ सकता है।
इस स्थिति के पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण 2022 में शुरू की गई अग्निपथ योजना है, जिसमें सेना में चार साल के लिए “अग्निवीरों” की भर्ती की जा रही है। हालांकि यह योजना युवाओं को सेना से जोड़ने का एक नया प्रयास है, लेकिन इसकी सीमाएं और अनुबंध आधारित प्रकृति के चलते कई युवा इससे जुड़ने में हिचकिचा रहे हैं। इसके अलावा, इस योजना को लेकर देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों ने भी भर्ती प्रक्रिया को धीमा कर दिया।
कोविड-19 महामारी ने भी इस कमी में एक बड़ा योगदान दिया। 2020 से 2022 के बीच सेना की अधिकांश भर्ती रैलियाँ स्थगित कर दी गईं, जिससे बड़ी संख्या में युवा सेना में भर्ती होने से वंचित रह गए। इस दौरान जो लोग उम्र की सीमा पार कर चुके, वे अब दोबारा इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले सकते।
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एक और प्रमुख कारण है सेवानिवृत्ति। हर साल हजारों सैनिक नियमित सेवा पूरी कर रिटायर होते हैं। साथ ही, तनाव, पारिवारिक दायित्व और अन्य व्यक्तिगत कारणों से कुछ सैनिक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति भी ले लेते हैं, जिससे रिक्त पदों की संख्या और बढ़ जाती है।

इस कमी के प्रभाव सीधे तौर पर देश की सीमाओं पर दिखाई दे सकते हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे कि एलओसी (LOC) और एलएसी (LAC) पर तैनातियों में दिक्कतें हो सकती हैं। इसके अलावा ऑपरेशनल एफिशिएंसी भी प्रभावित हो सकती है, क्योंकि कम सैनिकों को अधिक काम करना पड़ता है। साथ ही सैन्य प्रशिक्षण की गुणवत्ता और नियमित अभ्यास भी इस कमी से प्रभावित हो सकते हैं।
सरकार की ओर से अग्निपथ योजना को दीर्घकालिक समाधान के रूप में पेश किया गया है। रक्षा मंत्रालय का मानना है कि इस योजना से युवाओं को सैन्य अनुशासन मिलेगा और भविष्य में उन्हें नागरिक क्षेत्रों में भी बेहतर अवसर मिलेंगे। हालांकि रक्षा विशेषज्ञों और पूर्व सैन्य अधिकारियों का यह मानना है कि भारतीय सेना को स्थायी और प्रशिक्षित सैनिकों की जरूरत हमेशा बनी रहेगी।
"भारत जैसे विशाल और सामरिक दृष्टि से संवेदनशील देश में सेना की ताकत केवल सैन्य साजो-सामान से नहीं, बल्कि सैनिकों की संख्या और मनोबल से भी मापी जाती है। लेकिन हाल ही में यह सामने आया है कि भारतीय थल सेना में करीब 1 लाख सैनिकों की भारी कमी है। यह स्थिति केवल सुरक्षा के लिहाज से नहीं, बल्कि युवाओं के लिए अवसरों की दृष्टि से भी चिंताजनक है।
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इस समस्या से निपटने के लिए जरूरी है कि भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और नियमित बनाया जाए। साथ ही अग्निपथ योजना की समीक्षा कर यह सुनिश्चित किया जाए कि इससे सेना की ताकत कम न हो। युवाओं को सेना में करियर बनाने के लिए प्रेरित करने हेतु विशेष जागरूकता अभियान चलाना भी ज़रूरी है।