फागली पर्व: हिमाचली संस्कृति का अनोखा रंग

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फागली पर्व: हिमाचली संस्कृति का अनोखा रंग
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हिमाचल प्रदेश न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की पारंपरिक रीति-रिवाज और लोक-त्योहार भी इसे अनूठा बनाते हैं। उन्हीं में से एक फागली पर्व है, जिसे हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों में भव्यता से मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से लाहौल-स्पीति, कुल्लू, चंबा और किन्नौर जिलों में मनाया जाता है। इसे सर्दी के अंत और बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है।

फागली पर्व क्या है?

फागली हिमाचल प्रदेश का एक पारंपरिक पर्व है, जिसे फरवरी-मार्च के महीने में मनाया जाता है। यह माघ पूर्णिमा के आसपास आता है और इसमें खासतौर पर देवताओं, नृत्य, और सांस्कृतिक अनुष्ठानों का महत्व होता है।

इस त्योहार की मान्यता यह है कि इस समय देव शक्तियां जागृत होती हैं और गांवों में उनकी पूजा करके नकारात्मक ऊर्जा को दूर किया जाता है। यह पर्व पुराने समय में राक्षसों और बुरी आत्माओं को भगाने के लिए भी मनाया जाता था।

फागली पर्व कैसे मनाया जाता है?

मुखौटों के साथ अनोखा नृत्य

इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है मुखौटों (Masks) के साथ नृत्य।

ग्रामीण लोग विभिन्न राक्षसों, देवताओं और पौराणिक पात्रों के मुखौटे पहनकर नृत्य करते हैं। यह बुरी शक्तियों को दूर करने और नई ऊर्जा लाने का प्रतीक होता है।

देवताओं की पूजा

हिमाचली संस्कृति में देवता पूजा का विशेष महत्व है।

फागली में गांव के देवता को मंदिर से बाहर लाया जाता है और पूरे गांव में शोभायात्रा निकाली जाती है। लोग देवता के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।

पारंपरिक नाट्य एवं लोकगान

इस पर्व के दौरान “रासो” नामक एक पारंपरिक नाट्य खेला जाता है, जिसमें अच्छाई और बुराई के बीच की लड़ाई को दिखाया जाता है।

हिमाचली लोकगायक पारंपरिक गीत गाते हैं, जिनमें पौराणिक कथाओं और धार्मिक प्रसंगों का वर्णन होता है।

पारंपरिक व्यंजन और भोज

हर पर्व की तरह फागली में भी पारंपरिक भोजन का विशेष महत्व होता है।

इस दिन हिमाचली लोग सिड्डू, चिलड़ा, बबरू, दालें और चावल जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं। कई जगहों पर देवता को देशी घी और मंडली (विशेष अनाज) का भोग लगाया जाता है।

अग्नि प्रथा (Fire Rituals)

कई गांवों में अग्नि प्रथा (Fire Ritual) की जाती है, जहां लोग आग जलाकर उसमें जौ और तिल डालते हैं।

इसका अर्थ होता है पुराने साल की बुरी शक्तियों का नाश और नए साल की शुभ शुरुआत।

फागली पर्व की पौराणिक मान्यता

फागली पर्व को लेकर कई कहानियाँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, इस पर्व का संबंध महाभारत और पांडवों से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि पांडव जब अपने अज्ञातवास में थे, तब उन्होंने यह पर्व मनाया था।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह पर्व महिषासुर वध और शिव-पार्वती के विवाह से जुड़ा हुआ है।

किन-किन जिलों में मनाया जाता है?

फागली पर्व मुख्य रूप से हिमाचल के उच्च पर्वतीय इलाकों में मनाया जाता है। इनमें प्रमुख हैं:

  • लाहौल-स्पीति
  • किन्नौर
  • चंबा
  • मंडी और कुल्लू के कुछ क्षेत्र

हर जिले में इस पर्व को मनाने की शैली थोड़ी अलग होती है, लेकिन मूल भावना एक ही रहती है – नकारात्मकता का अंत और नई ऊर्जा का स्वागत।

फागली पर्व की आधुनिक स्थिति

आज भी हिमाचल के ग्रामीण क्षेत्रों में यह पर्व उसी उत्साह से मनाया जाता है। हालाँकि, शहरीकरण के कारण इसकी भव्यता में थोड़ी कमी आई है, लेकिन फिर भी यह हिमाचल की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बना हुआ है।

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