मुख्य निष्कर्ष: हिमाचल प्रदेश के लौल घाटी के सगर्रा गाँव में किसान तोग चंद ठाकुर ने चार वर्षों की मेहनत और वैज्ञानिक सहयोग से भारत में पहली बार घरेलू हींग की सफल खेती की है। इससे आयात पर निर्भरता घटेगी, किसानों की आमदनी बढ़ेगी और उपभोक्ताओं को सस्ता विकल्प मिलेगा।
परिचय: हींग की यात्रा और महत्ता
भारतीय रसोई में हींग (असाफोएटिडा) का उपयोग सदियों से होता रहा है। इसकी खुशबू और स्वाद दाल-तड़का, करी, अचार जैसी व्यंजनों में एक अलग पहचान देती है। परंतु अब तक भारत इस मसाले को मुख्यतः अफगानिस्तान और ईरान से आयात करता रहा है, जिसकी कीमत ₹8,000–10,000 प्रति किलोग्राम तक होती है।

चार साल की अथक मेहनत
वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
2019 में CSIR-IHBT (पलमपुर) के वैज्ञानिकों ने हिमाचल की ठंडी व सूखी जलवायु को हींग की खेती के लिए उपयुक्त पाया। हालांकि, शुरुआती प्रयोग असफल रहे। तब किसान तोग चंद ठाकुर ने इसे गंभीरता से अपनाया।
किसानी का अनुभव
“मैंने इन पौधों को अपने बच्चों की तरह संवारा,” कहते हैं 52 वर्षीय तोग चंद ठाकुर। “भयंकर ठंड, मिट्टी की तैयारी और सिंचाई तकनीकों में सुधार करते हुए चार साल लगे।” उन्होंने पौधों को बर्फबारी और कीटों से भी बचाया।
- फसल के परिपक्व होने में 4–5 वर्ष का समय
- सर्द और शुष्क जलवायु में बेहतर वृद्धि
- कार्बनिक खाद और विशेष सिंचाई विधियों का प्रयोग
किसानी से आर्थिक क्रांति तक
लाभ | विवरण |
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किसानों की आमदनी में वृद्धि | हींग ₹10,000 प्रति किलोग्राम तक बिक सकती है — सेब से भी अधिक लाभकारी |
उपभोक्ता मूल्य राहत | घरेलू उत्पादन से 30–40% तक सस्ती हींग संभव |
वैज्ञानिक उपलब्धि | अब तक आयात-आधारित फसल की भारत में सफल खेती |
स्वाद की कसौटी
“अरोमा तेज, जटिल, और शायद हमारी पहाड़ी वायु की देन—भूमि की खुशबू है इसमें।” – तोग चंद ठाकुर
स्थानीय रसोइयों का मानना है कि यह हींग “अर्थी किक” देती है — अफगानी किस्मों से अलग एक गहराई लिए हुए स्वाद।
चुनौतियाँ और समाधान
विस्तार की अड़चनें
- परिपक्वता समय: 4–5 वर्ष प्रति पौधा
- कर्षण प्रक्रिया: रेजिन निकालना श्रमसाध्य कार्य
- सीमित बीज उपलब्धता: मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं
सहयोगी पहल
- CSIR वैज्ञानिक तेजी से अनुकूल बीज विकसित कर रहे हैं
- राज्य सरकार सब्सिडी और प्रशिक्षण की पहल में है
- बीज वितरण और किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम सक्रिय
“अगले साल 20 किसान इसका प्रशिक्षण लेंगे। हमारी घाटी भारत की हींग राजधानी बनेगी।” – तोग चंद ठाकुर
आंकड़े व भविष्य की दिशा
विवरण | आंकड़ा |
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भारत का वार्षिक हींग आयात | 1,500 टन (90% अफगानिस्तान से) |
घरेलू उत्पादन लक्ष्य (2030 तक) | कुल मांग का 10% |
लाहौल में इच्छुक किसान | 200+ |
निष्कर्ष
एक किसान की संकल्पशक्ति और वैज्ञानिक सहयोग ने भारत में हींग उत्पादन की नई शुरुआत की है। यह पहल न केवल मसाला उद्योग को आत्मनिर्भर बना सकती है बल्कि हिमाचल को एक मसाला-प्रमुख राज्य के रूप में स्थापित कर सकती है।
“जब तक इस वादे में पहाड़ों की खुशबू नहीं होगी, भारतीय व्यंजनों का तड़का अधूरा है।”
— लाहौल की उपज, भारत का गौरव
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स्रोत: Himachal Headlines