एनआईटी हमीरपुर, एनआईटी वारंगल (तेलंगाना) और एनआईटी जालंधर के प्राध्यापकों और शोधार्थी ने इलेक्ट्रोकेमिकल तकनीक से कार्बन डाइऑक्साइड से हाइड्रो कार्बन फ्यूल तैयार किया है।
कार्बन डाइऑक्साइड से हाइड्रो कार्बन फ्यूल भी अब तैयार होगा। एनआईटी हमीरपुर, एनआईटी वारंगल (तेलंगाना) और एनआईटी जालंधर के प्राध्यापकों और शोधार्थी ने इलेक्ट्रोकेमिकल तकनीक से कार्बन डाइऑक्साइड से हाइड्रो कार्बन फ्यूल तैयार किया है। इस शोध को केंद्र सरकार के पेटेंट कार्यालय से मंजूरी मिल गई है। नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में यह फ्यूल पेट्रोल और डीजल का कारगर विकल्प बनकर उभर रहा है। ऐसे में विशेषज्ञों का यह आविष्कार नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है। बिजली, गर्मी और परिवहन के लिए जीवाश्म ईंधन जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। ऐसे में इस उत्सर्जन को कम करने में यह फ्यूल उपयोगी साबित होगा।
औद्योगिक क्रांति के बाद से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगातार बढ़ रही है। ऐसे में कार्बन डाइऑक्साइड से हाइड्रो कार्बन फ्यूल तैयार करना किसी क्रांति से कम नहीं है। इलेक्ट्रोकेमिकल तकनीक का प्रयोग करते हुए पानी को ब्रेक कर तैयार किए गए हाइड्रोजन आयोन के चार्ज पार्टिकल को मेम्ब्रेन से फिल्टर कर कार्बन डाइऑक्साइड के साथ मिश्रण से एक रिएक्शन किया है। इससे हाइड्रो कार्बन फ्यूल तैयार होगा। इसके लिए पहले इलेक्ट्रोलिसिस तकनीक से वाटर को ब्रेक कर हाइड्रोजन आयोन तैयार किया गया। तैयार हाइड्रोजन आयोन को मेम्ब्रेन फिल्टर से पास करने के लिए मेम्ब्रेन को ऐसे मोडिफाई किया है कि वह हाइड्रोजन आयोन के चार्ज पार्टिकल को ही फिल्टर करे, जबकि अन्य पार्टिकल को रोक ले।
शोध में तीन एनआईटी के विशेषज्ञ और शोधार्थी शामिल
उत्तर प्रदेश निवासी एनआईटी हमीरपुर के पीएचडी स्कॉलर अभिषेक कुमार, एनआईटी हमीरपुर के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहप्राध्यापक तापस पालइ, एनआईटी वारंगल के सहायक प्राध्यापक लीला मनोहर और एनआईटी जालंधर के सहायक प्राध्यापक अनुराग कुमार ने मिलकर यह शोध किया है। इसके पेटेंट के लिए साल 2023 में आवेदन किया था, जिसे अब भारतीय पेटेंट कार्यालय से मंजूरी मिल गई है।
ये हैं हाइड्रो कार्बन फ्यूल के फायदे
इस फ्यूल से चलने वाली गाड़ियों में ज्यादा शोर नहीं होता। वाहन पारंपरिक कारों की तुलना में कम फ्यूल की खपत करते हैं। खास बात यह है कि इससे कार्बन उत्सर्जन नाममात्र है और हाइड्रोजन का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से किया जा सकता है, जो कि पर्यावरण संरक्षण में सहायक है।
विशेषज्ञों और शोधार्थी ने पर्यावरण संरक्षण और भविष्य के नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अहम आविष्कार किया है। संस्थान के पेटेंट को मंजूरी मिल गई है।-डाॅक्टर अर्चना नानोटी, रजिस्ट्रार, एनआईटी हमीरपुर