शिमला। आज से लगभग 40 हजार साल पहले भी धरती पर मानव सभ्यता जीवित थी। उस दौरान मानव जाति सिर्फ मांस इत्यादी खाकर ही जीवित रहती थी। यह मानव जाति मांस के लिए जंगलों में शिकार करती थी। लेकिन उस दौरान शिकार करने के लिए आज की तरह आधुनिक औजार नहीं थी। 40 हजार साल पहले मानव जाति जिन औजारों से शिकार करती थी, उसके ऐतिहासिक अवशेष मिलने से इस बात का खुलासा हुआ है।
40 हजार साल पहले मानव सभ्यता जिन पत्थरों के औजारों का इस्तेमाल करती थी, उनके अवशेष हिमाचल के लाहौल-स्पीति, कांगड़ा की बाण गंगा घाटी, ब्यास घाटियों, नालागढ़ के शिवालिक घाटी, बिलासपुर की सिरसा सतलुज घाटियों और सिरमौर की मारकंडा घाटी से गुजरने वाले क्षेत्र में मिले हैं। इस बात का खुलासा राज्य संग्रहालय के अध्यक्ष हरि चौहान ने कार्यशाला के दौरान किया।
राज्य संग्रहालय के अध्यक्ष हरि चौहान ने बताया कि हिमाचल के विभिन्न जिलों से मिले पाषाणकालीन उपकरण आज भी प्रदेश के संग्रहालय में मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि उस दौरान मानव जाति अपनी जरूरत के अनुसार पत्थरों के औजार बनाती थी और उनका इस्तेमाल मास काटने, जानवरों की खाल निकालने, जमीन खोदने और पौधों की खाल निकालने के अलावा अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करती थी।
हरि चौहान ने बताया कि यह पाषाण काल के मिले औजार आज के आधुनिक औजारों जैसे कुल्हाड़ी, कुदाली , चॉपर के आकार के हैं। पाषाण काल के औजारों में सबसे अधिक अवशेष हिमाचल की लाहुल स्पीति में मिले हैं। इन औजारों को ढूंढने का काम साल 2017 में शुरू किया था, जो आज भी चल रहा है। हरि चौहान ने बताया कि पाषाण काल में पत्थरों के अलावा हड्डियों के भी औजार बनाए जाते थे। मानव जाति जानवरों को मार कर खा जाती थी और उसकी हड्डियांे के औजार बनाती थी।
हरि चौहान ने बताया कि इस बात का भी खुलासा हुआ है कि पाषाणकाल काल हिमाचल में तीन लाख साल से 40 हजार साल पहले तक चला था। इसके बाद मध्य पाषाण काल और वर्तमान में नव पाषाणकाल चल रहा है। इससे यह साबित होता है कि तीन लाख साल से 40 हजार साल पहले भी प्रदेश में मानव सभ्यता थी। इसके अलावा संग्रहालय में मध्य पाषाण काल और नव पाषाणकाल में भी उपयोग होने वाले पत्थरों के औजार भी मिले हैं।
इन सभी बातों का खुलासा राज्य संग्रहालय में प्राग ऐतिहासिक पाषाण औजार और उनकी तकनीक विषय पर आयोजित कार्यशाला में किया गया है। इस कार्यशाला के मुख्य विशेषज्ञ के रूप में डॉ. रिजा अब्बास मौजूद रहे।
उन्होंने बताया कि हिमालय की घाटियों में ज्यादातर नदी के किनारे पाए जाने वाले बड़े गोल आकार के पत्थरों के औजार मिले हैं। डॉ. रिजा अब्बास जो एक नामी पुरातत्वविद हैं। यह इंडियन न्यूमिस्मेटिकस हिस्टोरिक एंड कल्चरल रिसर्च फाउंडेशन नासिक में निदेशक के तौर पर कार्यरत हैं। इनका इस क्षेत्र में लगभग 25 वर्षों का अनुभव है।
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