चीन ने तिब्बत की लारुंग गार बौद्ध अकादमी पर कसा शिकंजा, 400 सैनिक तैनात और हेलिकॉप्टर भेजे
तिब्बत के मुद्दे पर चीन की कार्रवाई तेज
चीन ने पूर्वी तिब्बत की सरतार काउंटी में स्थित दुनिया के सबसे बड़े बौद्ध अध्ययन केंद्र लारुंग गार बौद्ध अकादमी में 400 सैनिकों की तैनाती और हेलिकॉप्टर भेजकर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिशें तेज कर दी हैं। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के मुताबिक, यह कदम 20 दिसंबर 2024 को उठाया गया।
चीन के इस कदम को क्षेत्र में धार्मिक स्वतंत्रता पर सख्त निगरानी और तिब्बती पहचान को दबाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
तिब्बत पर चीन का लंबा दावा
1951 से तिब्बत पर दावा करने वाला चीन, लगभग 74 सालों से इसे पूरी तरह अपने नियंत्रण में लाने के लिए कई कठोर कदम उठा चुका है। लारुंग गार, जो 1980 में स्थापित हुआ, बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र है। चीन इसे तिब्बती संस्कृति और स्वायत्तता के प्रतीक के रूप में देखता है और लगातार इस पर प्रतिबंध लगाता रहा है।
लारुंग गार पर दमनकारी नीति और प्रतिबंध
2016-2017 के दौरान, चीन ने इस अकादमी के हजारों मठवासी आवासों को ध्वस्त कर दिया और आधे से अधिक निवासियों को बेदखल कर दिया। यह अकादमी, जिसकी आबादी पहले 10,000 थी, अब घटकर आधी रह गई है।
नए नियम और आबादी पर नियंत्रण
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार, चीन अब लारुंग गार पर नए नियम लागू करने की योजना बना रहा है, जिनमें शामिल हैं:
- बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों की निवास अवधि को अधिकतम 15 साल तक सीमित करना।
- सरकारी पंजीकरण को अनिवार्य बनाना।
- चीनी छात्रों को अकादमी छोड़ने का निर्देश।
इन कदमों से लारुंग गार की आबादी और धार्मिक गतिविधियों पर सख्त अंकुश लगाया जा रहा है।
चीन की रणनीति और तिब्बत की पहचान पर संकट
चीन का यह कदम, तिब्बती बौद्ध केंद्र पर अपनी पकड़ मजबूत करने और धार्मिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की रणनीति का हिस्सा है। लारुंग गार जैसे प्रतिष्ठित आध्यात्मिक केंद्रों पर चीन के नियंत्रण से तिब्बत की पहचान और स्वायत्तता को खतरा बढ़ रहा है।